Friday, 6 April 2012

"वो मुझे याद कर रही होगी .."

धड़कन तो उसकी भी थम सी गयी होगी,
वो मुझको ख़त लिखने के रास्ते ढूंढ़ रही होगी,
कभी "माँ" कभी "बाप" कभी "भाई" को समझा रही होगी,
वो मुझसे एक दफे बात करने के बहाने ढूंड रही होगी,
शिकायत है उसके घरवालो को की आजकल पानी नमकीन है,
उन्हें क्या पता वो "घाघर" आंसुओं से भर रही होगी,
महिना बीत गया एक दुसरे से गुफ्तगू किये हुए,
वो कुछ आखरी खूबसूरत बातों को याद कर रही होगी,
या खुदा तुझे बहुत गुरुर है न तेरे खुदा होने पर,
फिर कर उसकी इबादत कबूल जिसमे वो मेरा नाम ले रही होगी.......  

Sunday, 25 March 2012

मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती.....

मेरा इश्क मंसूब-ए-वफ़ा है, यह तू क्यों नहीं समझती,
मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

खेलेगी तेरे दिल के साथ जी भर के, मुस्कुराते हुए,
मतलबी है यह सारी दुनिया, यह तू क्यों नहीं समझती,

चाहत है की तुझको छुपा के रखूं आँखों में अपनी,
बगावत के लिए तैयार है ज़माना, यह तू क्यों नहीं समझती,

जब जब तुझे देखा तब तब तेरी इबादत की है मैंने,
मेरी मोह्हबत पाक मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

अब ख़त्म भी कर अपने हुस्न की नुमाइश करना महफिलों में,
पिघल जायेगा मोम की तरह हुस्न तेरा, यह तू क्यों नहीं समझती......

बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने.....

निगाह मिलते ही निगाह झुका ली उसने,
बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने,

लडखडा रहें हैं जबसे मिलें है उनसे,
लगता है आँखों से पिला दी उसने,

बुझे चिराग दिल के फिर से जल उठे,
यह किस तरह की हवा चला दी उसने,

दरो-दीवार पर लिखा लहू से नाम मेरा,
बड़ी खूबसूरत सी वफ़ा की उसने.......

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,.....

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,
चाँद को जलाने के लिए तेरा रुखसार मिल जाये,
यह जो जाम बात करता है मदहोशी की बार बार,
जवाब देने को इसे, तुझसे मेरी निगाहें मिल जाये,
बहुत खुश होती है यह हवा अँधेरा करने पर,
तेरे चेहरे के चिराग से उलझे तो इसे पता चल जाये,
जब तू चले बलखाते हुए ज़मीन पर,
तो फलक ज़मीन से बेहिसाब जल जाये,
जब तू अंगडाई ले अपने शबिस्तान मे कभी कभी,
तो बहार तेरे घर में आने को मचल जाये,
कुछ इतनी खूबसूरत बनावट है उसके बदन की "अंकित",
की जिससे लिपटे वो,उसे जन्नत मिल जाये.......

कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ.....

करूँ भी या न करूँ, इस सोच में हूँ की,
उससे इकरार-ए-वफ़ा कैसे करूँ,

ना जाने कब उसके ज़ेहन में सियासत मचल जाये,
आखिर में उसपे भरोसा कैसे करूँ,

अभी अभी तो एक दर्द से उभरा है दिल मेरा,
फिर से इसे जख्मो के हवाले कैसे करूँ,

सुना है वो फिरसे करेगा मोह्हबत इस जिंदगी के बाद,
कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ......

यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं.....

मंजिल पाने की तलब में हमसफ़र बदल लेते हैं,
यहाँ लोग कदम कदम पर रास्ता बदल लेते हैं,

उससे कहदो की ज़रा सोच समझकर लगाये दिल किसी से,
वक़्त गुजरता नहीं की लोग दिल बदल लेते हैं,

एक महखाने से उठे तो दुसरे में जा बेठे,
पैमाने के साथ साथ लोग साकी बदल लेते हैं,

मत कर किसी की दोस्ती का यकीन इस ज़ालिम दुनिया में "अंकित",
यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं......

पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं.....

ना आसमान ना सितारे और ना यह चाँद,
पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं,

महकाने की बात करूँ या करूँ शराब की,
जो सुरूर तेरी आँखों में है, वो सुरूर कहीं भी नहीं,

पायल की रुनझुन हो या फिर कंगन की खनक,
जो मोह्हबत तेरी ख़ामोशी में है, वो कहीं भी नहीं,

अंदाज़ ए हूर हो या फिर नूर ए चाँद,
जो सादगी तेरे चेहरे में है वो कहीं भी नहीं,

काली सी घनी रात हो या फिर कोई चांदनी रात,
तेरी जुल्फों के सायें से खूबसूरत कुछ भी नहीं,

बहारों का मौसम हो या फिर किसी कलि का खिलना,
तेरे लहजे से मासूम इस जहाँ में कुछ भी नहीं.......

लहू इतना बहा की उससे उसका हमाम कर दिया.....

निगाह-ए-इश्क ने यह कैसा काम कर दिया,
देखा नहीं उसे की लोगो ने बदनाम कर दिया,

उसकी मोह्हबत में खुद से इस कदर हारे,
की खुद के दिल ने बेधकल दिल से सरे-आम कर दिया,

उस रात मेरा क़त्ल बहुत दर्दनाक था,
लहू इतना बहा की उससे उसका हमाम कर दिया,

मेरी वफ़ा का सलूक ऐसा मिला मुझे,
की मरने पर मेरे उसने जारी इनाम कर दिया,

दी है तकलीफ खुद को उसके इश्क में इस तरह "अंकित",
खाना छोड़ कर हिस्से अपने जाम कर दिया.....

वो रो रही होगी.....

मुझसे बिछुड़ के वो भी रो रही होगी,
आंसुओं से कपडे भिगो रही होगी,
बंद होगी जब वो अकेले कमरे में,
दीवारों पर मेरा नाम लिख रही होगी,
तन्हाई की उसको आदत नहीं बिलकुल भी,
मेरे ख्वाबों की ताबीर कर रही होगी,
मुद्द्तों हो गयी एक दुसरे से मुलाकात नहीं हुई,
मेरे खतों को पढ़कर अपना जी भर रही होगी,
पाक मोह्हबत है हमारी इस नापाक ज़माने में,
रो रो कर "माँ" को समझा रही होगी,
नादान है अभी थोड़ी, पागल भी प्यार में,
अपने जिस्म को वो चोट दे रही होगी,
खुद सह रही है बेहिसाब दर्द अभी,
लेकिन मेरे हिस्से ख़ुशी की दुआ कर रही होगी,
दलीलें हमारी पाक मोह्हबत के किस्सों की,
सिसक सिसक के "भाई" को सुना रही होगी,
कोई नहीं सुन रहा होगा उसकी फ़रियाद,
वो मेरे आने की राह देख रही होगी,
क्या "दर्द" ही है अंजाम मोह्हबत का,
खुदा से यह सवाल बार बार कर रही होगी,
या रब जवाब दे उसके सवाल का,
वो तेरा "नहीं" सुनने को तरस रही होगी.......

"में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा"........

कुछ ऐसा खोया उसकी निगाहों में,
की गीत मोह्हबत के गाता रहा,

कुछ इतनी कातिलाना थी अदाएं उसकी,
की किस्सा क़यामत का सबको सुनाता रहा,

उसने जो तिरछी नजर से देखा मुझे,
में खुद को गिरने से संभालता रहा,

जो हटाया उसने चेहरे से नकाब अपने,
में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा,

जो थामे थे उसने कभी हाथ मेरे,
वो हाथ दिल पर रख के दिल को बहलाता रहा,

कोई तोड़ ना दे दिल उसका कहकर बेवफा,
इसलिए में खुद को गुन्हेगार उसका बतलाता रहा,

कुछ ऐसा समाया था वो मेरी आँखों में "अंकित",
की दूर जाकर भी मेरे अश्कों में वो नजर आता रहा.........

"होली" .....

होली के रंग फीके पड़ गए
अब नहीं जचता कोई फागुन,
मुझको बतला के तो जाता
क्या करूँ में तेरे बिन,
तरस गए यह गाल मेरे
तेरे हाथो के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

तन्हाई में जिए बहुत हैं,
पर तनहा होली खेलें कैसें,
दर्द का मेरे एहसास करले,
खेल संग होली मेरे जीने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

अब कोई होली की टोली में,
नाचने का मन नहीं करता है,
नशा भांग का चड़ता नहीं है
तेरे दो नैनो के बिन,
मुझमे सुरूर चढाने को आ,
नशीला मुझको करने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

आ की तुझको बाँहों में फिर से में यूँ क़ैद करूँ,
तेरे गोरे गालों को अपने हाथो से रंगूँ,
खो बेठुं सब सुध बुध अपनी
बस तुझको में प्यार करूँ,
फागुन की मस्ती में पागल होकर तुझसे प्यार करूँ,
समझ ले मेरे एहसासों की पावन सी कहानी को,
फिर चूम ले मेरे गलों को
मस्ती में जीने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए.......

"मैं मुस्कुरा के उसके सामने आइना रख देता हूँ"....

वो पूछती है मुझसे, की मैं क्या हूँ,
में फूल सजा कर आगे उसके, सर को झुका देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की मेरी कौनसी अदा लुभाती है तुम्हे,
में सहम के उसकी जुल्फें आँखों पर गिरा देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की यह मोह्हबत क्या है,
मैं मुस्कुरा के उसके सामने आइना रख देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की क्या बात पसंद है मेरी तुम्हे,
में उसके लबों पर हाथ रख उसे खामोश कर देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की बिछुड़ गए तो क्या करोगे,
में रोते हुए उसे कब्रिस्तान दिखा देता हूँ .......

"शराब".....

चूमता हूँ प्याला जीने के लिए,
में पीता नहीं पीने के लिए,
उसकी याद जब जब आती है,
जाम पर नजर चली जाती है,
हलक से उतरते ही शराब,
चारो तरफ उसकी तस्वीर नजर आती है,
उदासी में हूँ या ख़ुशी में,
साथ यह हमेशा निभाती है,
तुझसे तो अच्छी यह शराब है,
इससे रूठ कर जाऊँ भी तो,
बार बार मुझे मनाने आती है.....

एक खुदा है जो दीखता भी तो नहीं......

बहाने क्या बनाऊ तुझसे मिलने के लिए,
कोई मेरी फ़रियाद सुनता भी तो नहीं,

एक दुसरे से जुदा होकर जीना मुश्किल है,
लेकिन यह बात ज़माना मानता भी तो नहीं,

बंदगी किसकी करूँ तुझे पाने के लिए,
एक खुदा है जो दीखता भी तो नहीं,

कैसे सुने कोई तड़प इस दिल की,
यह महफिलों में चीखता भी तो नहीं,

आखिर कैसे न सोचूं तुझसे मोह्हबत के बारे में,
यह मौसम बहार का रुकता भी तो नहीं,

वो तो चल दिए कहकर की मुलाकात ख्वाबों में करेंगे,
कोई बतलाये उन्हें, "अंकित" उनकी याद में सोता भी तो नहीं.......

सोने न दिया मुझे तेरे वस्ल के सवालातों ने.....

एक उम्र गुजर दी तनहा रातों में,
नम कर दी आँखें तेरे खयालातों ने,

बिस्तर की सिलवटों ने सारे राज़ बयां कर दिए,
सोने न दिया मुझे तेरे वस्ल के सवालातों ने,

ना जाने उसकी बातों ने क्या जादू बिखेरा दिल पर,
की मोह्हबत करा दी उनसे दो रोज की मुलाकातों ने,

उसके होंठों पर चमक रही थी मोती की तरह बूँदें,
क़यामत ढा दी थी उन धीमी धीमी बरसातों ने.......

"तालीम-ए-इश्क तुने सीखी नहीं यह सुनकर लौट गयी है".....

वो मुझे देखने के लिए कई बार जन्नत तक गयी है,
तालीम-ए-इश्क तुने सीखी नहीं यह सुनकर लौट गयी है,

उसने कई बार मुझे बेसुध होकर पुकारा ठुकराने के बाद,
लगता है वो बेवफाई करते करते थक सी गयी है,

अब उसका हुस्न भी नुमाइश के लिए नहीं मचलता,
लगता है उसके दिल को मोह्हबत हो गयी है,

ना जाने कितने दिलों के साथ खेला है उसने बड़ी दिलचस्पी से,
की अब उसके आईने को भी उसके चेहरे से नफरत हो गयी है,

शोक-ए-बेवफाई ने उसे तबहा कर डाला,
की सारी कायनात उससे रूठ सी गयी है,

"अंकित" भूल जा सरे दिए गम उसके और उसको जिंदगी बक्श दे,
देर से ही सही लेकिन उसे मोह्हबत से मोह्हबत तो हो गयी है.......

"वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती"......

यह मेरे लहजे में तकल्लुफ्फ़ ना होती,
गर मुझे किसी से मोह्हबत ना होती,

में बेशक मर गया होता उसके जाने के बाद,
गर मेरे घर में सियासत की बात ना होती,

कुछ तो बात थी उसकी आँखों में "अंकित",
वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती,

मोह्हबत में मोह्हबत का जुदा होना भी जरुरी है,
वरना खुदा तेरी कभी इबादत ना होती,

में भी उसकी तरह आज यार बदलता रहता,
गर मेरे ज़हन में वफ़ा गिरफ्त ना होती.....

अपनी मांग में मेरा सिन्दूर भर के मुझे तर कर दे......

कुछ वक़्त तेरे हिस्से का मेरे हिस्से कर दे,
मुझको मेरे गमो से बेखबर कर दे,

बहुत तडपा हूँ में चाँद को देखने के लिए,
नकाब चेहरे से हटा कर थोड़ी चांदनी इधर कर दे,

महफूज़ रखूँगा में तुझको मोह्हबत में हमेशा,
अपनी मांग में मेरा सिन्दूर भर के मुझे तर कर दे,

तनहा चलते चलते थक सा गया हूँ में,
हाथो में हाथ डाल इस तरह, की मेरे हिस्से भी हमसफ़र कर दे......

खूबसूरत किया है तुने अंजाम मेरा....

अपने लबो से लेकर तुने नाम मेरा,
खूबसूरत किया है तुने अंजाम मेरा,

तेरी इबादत में गुजार दूं जिंदगी सारी,
अब इसके अलावा नहीं कोई काम मेरा,

कुछ ऐसी शिद्द्त से तुने लगाया सीने से मुझे,
की याद आया यही तो था मुकाम मेरा,

झुकी झुकी नजरो से तुने पुकारा मुझे,
सिर्फ तुने ही तो किया है एहतराम मेरा,

कुछ इस कदर से हुई मोह्हबत खुद के नाम से "अंकित".
की जचता नहीं अब कोई मुझे हमनाम मेरा.......

वो रात .....

उसके सुर्ख होंठों का झरना मेरे होंठों पर गिरता रहा,
चांदनी सा बदन मेरे आघोष में टूटता रहा,
ना उसने कोई बात करी ना मैंने अपने लब हिलाए,
मोह्हबत का समां ख़ामोशी से बनता रहा,
चूड़ियों से भरे हाथ उसके मेरे बदन पर मचलते रहे,
उसकी बिंदिया चमकती रही, उसका गजरा महकता रहा,
बेसुध होकर एक दुसरे से मोह्हबत करी हमने,
एक दुसरे की साँसों से मोह्हबत का गीत बनता रहा,
उसकी जुल्फें मेरे चेहरे पर रेंगने लगी,
चाँद शर्मा कर बादलो के बीच छुपता रहा,
वो काली घनी रात ने छुपाया हमें एक दुसरे से,
आँखें बंद रही और प्यार होता रहा,
उसने जब मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे,
मोह्हबत का सैलाब उफनता रहा,
उस रात कोई शिकवा या शिकायत ना की हमने एक दुसरे से,
बस मोह्हबत का कारवां चलता रहा,
बहुत खूबसूरत वो रात गुजरी थी "अंकित",
जिस रात वो पूरी तरह मेरे आघोष में टूटता रहा.....

आँखों में अपनी कई ख्वाब सजा कर लाया हूँ.....

सजदा करने तेरी चोखट पर आया हूँ,
अरमानो के सायें में तुझसे मिलने आया हूँ,

अब मुझको भी चैन की नींद सो लेने दे,
आँखों में अपनी कई ख्वाब सजा कर लाया हूँ,

अब तो मुझपर रहम कर दे मोह्हबत का,
एक अरसे से दिल को सिर्फ तेरे नाम से बहलाया हूँ,

तू क्यों नहीं आता फ़क़त तेरी याद आ जाती है,
क्या अपना पता सिर्फ तेरी यादों को बतलाया हूँ,

बेशक तू मुझे नवाज दे सजा-ए-मौत,
लेकिन गौर कर की अपनी जिंदगी में तुझको बनाया हूँ......

आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था..........

तू मकतल पर खंजर छोड़ गयी भूले से,
मेरी मौत का इलज़ाम तेरे सर तो आना ही था,

क्या शिकवा उससे करना बेवफाई का,
जो हमेशा से सिर्फ एक बेगाना ही था,

उसका नया चेहरा हर रोज सामने आता था,
कैसे कह्दूं फिर की अभी अभी तो उसे पहचाना ही था,

उसको क्यों फिकर होगी मेरे गमो की,
वो जो भी था, लेकिन एक अनजाना ही था,

भूल जायेंगे उसे रफ्ता रफ्ता एक दिन,
आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था.....

Tuesday, 14 February 2012

हम तो तेरे होंठों को चूमने की चाहत करतें हैं.......

दिल से उनका एहसास करतें हैं,
आईने में उनका दीदार करतें हैं,

वो दूर है मुझसे तो क्या हुआ,
ख्वाबों में उनसे मुलाकात करतें हैं,

मालूम है की बहुत तडपा है वो पेड़ पानी के लिए,
हम उसके लिए आंसुओं की बरसात करतें हैं,

हमको फिकर उनकी खुद से ज्यादा रहती है,
जलाते है घर अपना, और रोशन उनका करतें हैं,

इश्क में क्या खोना और क्या पाना,
मुनाफे के सोदे में सोचा नहीं करतें हैं,

मुझसे मत पूछ ख्वाहिश मेरी, पछताएगी,
हम तो तेरे होंठों को चूमने की चाहत करतें हैं,

कुछ ऐसी बनावट है उसके बदन की "अंकित",
करना कुछ और चाहते हैं, लेकिन कुछ और करतें हैं........ 

Friday, 27 January 2012

बस एक रस्म वफ़ा की वो निभाना भूल गया.......

बेदर्द ज़माने की सारी रस्मे याद थी उसे,
बस एक रस्म वफ़ा की वो निभाना भूल गया,

क्या गिला, क्या शिकवा, क्या शिकायत उससे करना,
जो अपना नाम मेरे दिल पर लिखकर मिटाना भूल गया,

कभी तन्हाई के साए में याद बनकर चला आता था,
वो शख्स जो आज मेरे घर का पता ठिकाना भूल गया,
यह कौनसे गम का पैमाना खाली किया उसने,
यह कौनसा दर्द है जो वो मुझे देना भूल गया,
मेरे कानो में नहीं गूंजती अब उसकी कोई आवाज,
लगता है वो मुझसे बिछुड़ के खिलखिलाना भूल गया,
हमसे क्या जुदा हुआ की कोई कदरदान नहीं उसका,
यूँ हुआ की वो अब अपने हुस्न पर इतराना भूल गया.......

Tuesday, 24 January 2012

तेरे होंठों पर अपने होंठों से प्यार लिख दूँ.....

आ की तुझे बाँहों में क़ैद कर लूँ,
तेरे होंठों पर अपने होंठों से प्यार लिख दूँ,

सितारों की चाहत है तुझे या चाहत चाँद की,
तू कहे तो में उन्हें तेरा गुलाम कर दूँ,

फ़क़त तेरे इश्क से बढ़कर कुछ भी नहीं ज़माने में,
तेरी मोह्हबत के खातिर में खुद को बदनाम कर दूँ,

अब तो मान जा की तुझे भी मुझसे मोह्हबत है,
या में तेरी किताब में छुपी तस्वीर सरेआम कर दूँ,

सुना है की तुझे इस ज़माने का खौफ बहुत है,
तू कहे तो में इनका किस्सा तमाम कर दूँ........
   

Monday, 23 January 2012

इन निगाहों को मोह्हबत का राज़ छुपाना नहीं आता है......

दूर तेरी यादों से जब तन्हाई में बेठता हूँ,
कतरा तेरी याद का अश्क बनकर चला आता है,

रोती तो तू भी होगी मुझसे जुदा होकर,
तभी तो मेरे अश्कों पर नाम लिखा तेरा आता है,

गर ज़रा भी इल्म नहीं तुझे मेरे ठिकाने का,
फिर क्यों तेरे नाम का ख़त रोज मेरे दर पर आता है,

हर दफे आंसूं बहाकर कहा मोह्हबत नहीं तुमसे,
बहुत ही खूबसूरत सा झूठ तुम्हे बोलना आता है,

निगाहों से निगाहों को मिलने न देना भूले से भी,
इन निगाहों को मोह्हबत का राज़ छुपाना नहीं आता है,

रख लबो पर नाम "अंकित" और हाथो में तस्बीह (माला),
फिर कहती हो की मुझे इज़हार-ए-मोह्हबत करना नहीं आता है........   

Thursday, 19 January 2012

यह आँखें भीगी रही रात भर.......

तेरे आने की आस में जागी रात भर,
यह आँखें भीगी रही रात भर,

न तुम आये ना आया कोई ख़त तुम्हारा,
बेफिजूल में ना नींद आई रात भर,

नींद से बद्तमीज़ी न करते तो ही अच्छा होता,
यूँ आँखें तो न सूजी होती रात भर,

तू तो सिमटा रहा किसी और की बाँहों में,
और मैं करवटे बदलता रहा रात भर,

देख सूजी आँखें और सिलवटें बिस्तर की,
माँ भी पूछ बेठी, बेटा सोया नहीं क्या रात भर......    

Wednesday, 18 January 2012

"शायर"

हर एक पल ज़हर पीते हैं, शायरी करते हैं,
बात बात पर हम मोह्हबत की बात करते हैं,
गमो में हमारे रोने को कोई भी नहीं,
शिकायत हम इस बात की कभी नहीं करते हैं,
सजती है महफिलें हमारे ही ग़मो से,
जहाँ शेर-ए-दर्द पर सब वाह वाह करते हैं,
सरे-कु-ए-यार (प्रेमिका की गली में) पर दिन रात गुजार दें,
हर कदम पर हम सिर्फ आशिकी करतें हैं,

जो दिल में छुपा बेठा है बस वो खुश रहे,
उस शख्स के लिए हम जिंदगी बर्बाद करते हैं,

फिकर उसको नहीं हमारे आंसुओं की,
फिर भी हम उसी से प्यार करतें हैं,

ग़म-ए-मोह्हबत हो या लुत्फ़-ए-मोह्हबत,
हम हर बात का शुक्रिया अदा करते हैं,

जितना चाहो खेलो हमारी तकदीर से,
हम लोग तकदीर को भी नजरअन्दाज़ करते हैं,
 
न फिकर जान की, न खोफ तबाही का,
मूँद कर अपनी आँख हम मोह्हबत करते हैं.........

मेरा यह दिल भी मुझे अब पराया सा लगता है.....

जब जब कोई निगाहों से बात करता है,
क़यामत का मंजर सामने आने लगता है,

न जाने क्यों पूछती है मोह्हबत वोही सवाल,
जिसका जवाब तलाशने में ज़माना लगता है,

हर वो शख्स दुश्मन नजर आता है मुझे,
जो मेरे "शेर-ए-दर्द-ए-मोह्हबत" पर वाह वाह करता है,

फ़क़त एक शख्स न मिला तो धड़कना नहीं चाहता,
मेरा यह दिल भी मुझे अब पराया सा लगता है,
आखिर किसे पूछें हम अंजाम-ए-मोह्हबत "अंकित",
मोह्हबत के नाम पर हर शख्स आँसूं बहाने लगता है......

Monday, 16 January 2012

तभी वो किस्से ज़माने के, एक माँ की तरह समझाती थी..........

आँखें तो उसकी भी नाम हो जाती थी,
जब कभी बात जुदाई की आती थी,

आखिर कैसे कह दूँ में उसे बेवफा,
वो फूल सजदे में, मेरे ही नाम के चढ़ाती थी,

मजबूरियों से हारी है वो और कुछ भी नहीं,
तभी वो किस्से ज़माने के, एक माँ की तरह समझाती थी,

कैसे मान लूँ की उसे अब मेरा चेहरा पसंद नहीं,
जो मुझे कभी अँधेरे में भी पहचान जाती थी,

चाहत उसकी भी थी मुझे हमसफ़र बनाने की,
जब कभी कड़कती थी बिजली, वो मेरी बाँहों में सिमट जाती थी.......... 

Friday, 13 January 2012

पुरवईया......

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया......
रैना बीते सावन भादो,
रैना बीते सावन भादो,
प्यासी है हर नदिया नदिया,

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
रतिया रतिया तनहा रतिया,
रतिया रतिया तनहा रतिया,
नैना खेले आँख मिचोली,
रतिया रतिया तनहा रतिया,
तेरी सुध में घुमुं दर दर,
मूंदे अपनी अँखियाँ अँखियाँ, 

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
आस में थारी बीती रतिया,
आस में थारी बीती रतिया,
जोगन बन बन पुकारूँ सैयां,
आस में थारी बीती रतिया,
रोक परिंदा को में छत पर,
करूँ बस थारी बतिया बतिया, 

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
चोखट थारी मारा मंदिर,
चोखट थारी मारा मंदिर,

देवता तू मैं हूँ पुजारिन,
चोखट थारी मारा मंदिर, 
करूँ आरती दिन और रतिया,
और निहारूं थारी सुरतिया........

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......



Friday, 6 January 2012

"सियासतदार".........

हक की नहीं बात सियासत की करने आयें हैं,
जो लोग मेरी गली में पहली दफे आयें हैं,

सिक्कों की चाहत, और कुर्सी के अरमान उनको,
जो लोग घर से निकल कर देश बचाने आयें हैं,

अन्दर आने को तोड़ देते थे जो बंद दरवाजे,
वो लोग आज खुले दरवाजो को खटखटाने आयें हैं,

होता है कैसा दर्द गरीब का जिन्हें मालूम नहीं,
वो लोग आज उसके दर्द बाटने आयें हैं,

तस्वीरो पर चढ़नी चाहिए जिनके माला,
वो लोग खुद गले में माला पहनकर आयें हैं,

सियासत की तलब तो देखो कैसी मचल रही है,
की वो सौदा देश का एक बोतल से करने आयें हैं......  

Thursday, 5 January 2012

साजिश ए मोह्हबत........

जब से उनसे मुलाकात होने लगी है,
खूबसूरत यह शाम लगने लगी है,

इन गुस्ताख निगाहों का रवैया तो देखो,
की उनकी आँखें अब कोहिनूर लगने लगी हैं,

अल्फाजो का साहिर(जादू) कुछ ऐसा हुआ उनके,
की उनकी जुबां अब शायरी लगने लगी है,

वो जाते नहीं की फिर होने लगती है मिलने की चाह,
हर मुलाकात जैसे पहली मुलाकात लगने लगी है,

उनसे क्या मिलें की भूल गए जामने को,
यह दुनिया अब हमें बेगानी लगने लगी है,

आँखों में चमक और मुस्कराहट लबों पर,
यह साजिश हमें साजिश ए मोह्हबत लगने लगी है.....  

Tuesday, 3 January 2012

तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे........

सही नहीं जाती अब यह तन्हाई हमसे,
यूँ कर के यह रात कुछ छोटी कर दे,

अगर सजदे क़ुबूल करने का वक़्त नहीं तुझे,
ए खुदा तो यह जिंदगी खत्म कर दे,

आखिर तो एक रोज छोडनी है यह दुनिया भी,
तू वक़्त से पहले ही मुझे फ़ना कर दे,

एक उम्र गुजर दी तन्हाई के सायें में मैंने,
अब इस जिंदगी की क़ैद से मुझे रिहा कर दे,

जिंदगी से डर नहीं मौत से प्यार है मुझे,
तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे,

एक रोज तो दिल भी पूछ बेठेगा, आखिर यह दर्द क्यों
उसके सवाल से पहले यह धड़कन बंद कर दे,

उसका वादा था की वो नहीं देखेगा मेरा चेहरा कभी,
उसे हक है की वो मेरी मौत पर वादाखिलाफी कर दे.......
 

Sunday, 1 January 2012

सेहर होते ही सर को झुखना पड़ता है.......

रात है तो रात ही रहने दो,
अँधेरे में गरीब को सुकून मिलता है,

रात के अँधेरे में छुप जाता है मुल्क मेरा,
उजाले में हर शख्स को चिथड़ो का जवाब देना पड़ता है,

रात के वक़्त तान खड़ा रहता है सीना,
सेहर होते ही सर को झुखना पड़ता है,

मोह्हबत है अँधेरे से मेरे मुल्क को,
उजाले में तो हर एक शख्स इसे किसी का गुलाम लगता है,

छुपा लेता है अँधेरे में अपने अश्क,
उजाले में मुल्क मेरा आँखें खोलने से डरता है......    

तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं.......

मोह्हबत के दिए जब ज़ख्म भरने लगते हैं,
उनकी यादों के सायें फिर सामने आने लगते हैं,

जब जब सोचा की नहीं देखे उन्हें,
तब तब वो अपनी जुल्फें बिखेंरने लगते हैं,

हर उस दोस्त से दुश्मनी है अब हमारी,
जो तेरी गली से गुजरने लगते है,

आखिर कैसे सोचूं तुझसे दूर जाने के लिए,
तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं,

ज़माने से कोई चाहत नहीं अब हमारी,
ज़ख्म भरता नहीं की, फिर मोह्हबत की बात करने लगते हैं........ 

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I am very sensative and emotional type of guy, and i can't live without 3 things my love,poetry,my friends.