हर एक पल ज़हर पीते हैं, शायरी करते हैं,
बात बात पर हम मोह्हबत की बात करते हैं,
गमो में हमारे रोने को कोई भी नहीं,
शिकायत हम इस बात की कभी नहीं करते हैं,
सजती है महफिलें हमारे ही ग़मो से,
जहाँ शेर-ए-दर्द पर सब वाह वाह करते हैं,
सरे-कु-ए-यार (प्रेमिका की गली में) पर दिन रात गुजार दें,
हर कदम पर हम सिर्फ आशिकी करतें हैं,
जो दिल में छुपा बेठा है बस वो खुश रहे,
उस शख्स के लिए हम जिंदगी बर्बाद करते हैं,
फिकर उसको नहीं हमारे आंसुओं की,
फिर भी हम उसी से प्यार करतें हैं,
ग़म-ए-मोह्हबत हो या लुत्फ़-ए-मोह्हबत,
हम हर बात का शुक्रिया अदा करते हैं,
जितना चाहो खेलो हमारी तकदीर से,
हम लोग तकदीर को भी नजरअन्दाज़ करते हैं,
न फिकर जान की, न खोफ तबाही का,
मूँद कर अपनी आँख हम मोह्हबत करते हैं.........
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