Tuesday, 3 January 2012

तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे........

सही नहीं जाती अब यह तन्हाई हमसे,
यूँ कर के यह रात कुछ छोटी कर दे,

अगर सजदे क़ुबूल करने का वक़्त नहीं तुझे,
ए खुदा तो यह जिंदगी खत्म कर दे,

आखिर तो एक रोज छोडनी है यह दुनिया भी,
तू वक़्त से पहले ही मुझे फ़ना कर दे,

एक उम्र गुजर दी तन्हाई के सायें में मैंने,
अब इस जिंदगी की क़ैद से मुझे रिहा कर दे,

जिंदगी से डर नहीं मौत से प्यार है मुझे,
तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे,

एक रोज तो दिल भी पूछ बेठेगा, आखिर यह दर्द क्यों
उसके सवाल से पहले यह धड़कन बंद कर दे,

उसका वादा था की वो नहीं देखेगा मेरा चेहरा कभी,
उसे हक है की वो मेरी मौत पर वादाखिलाफी कर दे.......
 

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