जब जब कोई निगाहों से बात करता है,
क़यामत का मंजर सामने आने लगता है,
न जाने क्यों पूछती है मोह्हबत वोही सवाल,
जिसका जवाब तलाशने में ज़माना लगता है,
हर वो शख्स दुश्मन नजर आता है मुझे,
जो मेरे "शेर-ए-दर्द-ए-मोह्हबत" पर वाह वाह करता है,
फ़क़त एक शख्स न मिला तो धड़कना नहीं चाहता,
मेरा यह दिल भी मुझे अब पराया सा लगता है,
आखिर किसे पूछें हम अंजाम-ए-मोह्हबत "अंकित",
मोह्हबत के नाम पर हर शख्स आँसूं बहाने लगता है......
No comments:
Post a Comment