Thursday, 5 January 2012

साजिश ए मोह्हबत........

जब से उनसे मुलाकात होने लगी है,
खूबसूरत यह शाम लगने लगी है,

इन गुस्ताख निगाहों का रवैया तो देखो,
की उनकी आँखें अब कोहिनूर लगने लगी हैं,

अल्फाजो का साहिर(जादू) कुछ ऐसा हुआ उनके,
की उनकी जुबां अब शायरी लगने लगी है,

वो जाते नहीं की फिर होने लगती है मिलने की चाह,
हर मुलाकात जैसे पहली मुलाकात लगने लगी है,

उनसे क्या मिलें की भूल गए जामने को,
यह दुनिया अब हमें बेगानी लगने लगी है,

आँखों में चमक और मुस्कराहट लबों पर,
यह साजिश हमें साजिश ए मोह्हबत लगने लगी है.....  

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