Friday, 6 January 2012

"सियासतदार".........

हक की नहीं बात सियासत की करने आयें हैं,
जो लोग मेरी गली में पहली दफे आयें हैं,

सिक्कों की चाहत, और कुर्सी के अरमान उनको,
जो लोग घर से निकल कर देश बचाने आयें हैं,

अन्दर आने को तोड़ देते थे जो बंद दरवाजे,
वो लोग आज खुले दरवाजो को खटखटाने आयें हैं,

होता है कैसा दर्द गरीब का जिन्हें मालूम नहीं,
वो लोग आज उसके दर्द बाटने आयें हैं,

तस्वीरो पर चढ़नी चाहिए जिनके माला,
वो लोग खुद गले में माला पहनकर आयें हैं,

सियासत की तलब तो देखो कैसी मचल रही है,
की वो सौदा देश का एक बोतल से करने आयें हैं......  

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