मोह्हबत के दिए जब ज़ख्म भरने लगते हैं,
उनकी यादों के सायें फिर सामने आने लगते हैं,
जब जब सोचा की नहीं देखे उन्हें,
तब तब वो अपनी जुल्फें बिखेंरने लगते हैं,
हर उस दोस्त से दुश्मनी है अब हमारी,
जो तेरी गली से गुजरने लगते है,
आखिर कैसे सोचूं तुझसे दूर जाने के लिए,
तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं,
ज़माने से कोई चाहत नहीं अब हमारी,
ज़ख्म भरता नहीं की, फिर मोह्हबत की बात करने लगते हैं........
उनकी यादों के सायें फिर सामने आने लगते हैं,
जब जब सोचा की नहीं देखे उन्हें,
तब तब वो अपनी जुल्फें बिखेंरने लगते हैं,
हर उस दोस्त से दुश्मनी है अब हमारी,
जो तेरी गली से गुजरने लगते है,
आखिर कैसे सोचूं तुझसे दूर जाने के लिए,
तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं,
ज़माने से कोई चाहत नहीं अब हमारी,
ज़ख्म भरता नहीं की, फिर मोह्हबत की बात करने लगते हैं........
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