Wednesday, 28 December 2011

आँखें.......

कुछ तो कम कर दे यह वक़्त इंतज़ार का,
की तेरे दीदार को गयी हैं मेरी आँखें,

आखिर कब तुझे अपनी आँखों में देखूं आईने के सामने,
तड़प रहीं हैं तुझे सामने देखने को मेरी आँखें,

ना जाने सुकून की नींद कबसे नहीं ली मैंने,
एक अरसे से सूजी हुई है मेरी आँखें,

है हर ख़ुशी हर दोस्त मेरे आस पास,
पर फिर भी तेरा ही ख्वाब बुनती हैं मेरी आँखें,

अब और नहीं होता यह इंतज़ार मुझसे,
की तेरी याद में भर आयीं मेरी आँखें,

दो पल के लिए आ लेकिन तू मिलने आ,
की तुझे देख फिर से चमक उठे मेरी आँखें......

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