Thursday, 8 December 2011

तू ही तू तू ही तू.....

दर्पण दर्पण पूछ रहा है, मुझसे अब मेरा वजूद,
उसको कैसे समझाऊँ में, मेरे नस नस में है तू,
भूल गया में खुद को जबसे, चाहा है मैंने तुझको,
धड़कन से लेकर आँखों तक, बस तू ही तू तू ही तू,

चल पड़ा हूँ उस रास्ते,जिसकी न कोई मंजिल है,
किसको मोह्हबत में हासिल, हुई बोलो ख़ुशी है,
कैसे दिखलाऊँ में तुझको रंग अपनी चाहत का,
मेरे रग रग में तो है, बस तू ही तू तू ही तू,

सजदे किये लाखों मैंने मंदिर मस्जिद जा जाके,
लौट आया लेकिन खाली हाथ रोते गाते,
जबसे तुझको पूजा मैंने, हर ख़ुशी हासिल हुई,
अब से मेरा खुदा है, बस तू ही तू तू ही तू.....

No comments:

Post a Comment

About Me

My photo
I am very sensative and emotional type of guy, and i can't live without 3 things my love,poetry,my friends.