दीदार ए यार का नशा उतरता नहीं,
और वक़्त उन्हें हमसे मिलने का मिलता नहीं,
बहुत मशरूफ हैं वो अपनी महफिलों में,
की अब तनहा खड़ा "अंकित" उन्हें दीखता नहीं,
उसको होती अगर तेरी फिकर ज़रा भी,
तू तुझे यूँ रोता देख वो मुस्कुराता नहीं,
खता तुने ही की अपनी मोह्हबत में,
हद से ज्यादा न चाहता तो वो बेवफा होता नहीं,
लाख समझाया तुझे लेकिन तू न माना,
की हर खूबसूरत चेहरा वफादार होता नहीं,
अब आंसूं पोंछ और मुस्कुरा उसे देखकर,
रोने से बेवफा सनम लौट कर आता नहीं....
और वक़्त उन्हें हमसे मिलने का मिलता नहीं,
बहुत मशरूफ हैं वो अपनी महफिलों में,
की अब तनहा खड़ा "अंकित" उन्हें दीखता नहीं,
उसको होती अगर तेरी फिकर ज़रा भी,
तू तुझे यूँ रोता देख वो मुस्कुराता नहीं,
खता तुने ही की अपनी मोह्हबत में,
हद से ज्यादा न चाहता तो वो बेवफा होता नहीं,
लाख समझाया तुझे लेकिन तू न माना,
की हर खूबसूरत चेहरा वफादार होता नहीं,
अब आंसूं पोंछ और मुस्कुरा उसे देखकर,
रोने से बेवफा सनम लौट कर आता नहीं....
Nice, Bahut hi achchha hai
ReplyDeleteलाख समझाया तुझे लेकिन तू न माना,
ReplyDeleteकी हर खूबसूरत चेहरा वफादार होता नहीं,
अब आंसूं पोंछ और मुस्कुरा उसे देखकर,
रोने से बेवफा सनम लौट कर आता नहीं....बेहतरीन ग़ज़ल,चंद लफ्जों में सब कुछ बया कर दिया आपने