सेहर हो या शाम में तुझे ही याद करता हूँ,
में तन्हाई से सिर्फ तुम्हारी ही बात करता हूँ,
लबों पर आते आते क्यों रुक गयी दिल की बात,
दिल से यह सवाल बार बार करता हूँ,
आखिर क्यों न समझ सका तू मेरी खामोश जुबां,
में तुझको नहीं अपनी नजरो को गुन्हेगार करता हूँ,
जुल्म मोह्हबत एकतरफा करने का है,
में खुद के लिए सजा ए तन्हाई मुक़र्रर करता हूँ,
तेरे सिवा कोई और चाहत नहीं इस कायनात में मेरी,
अब तू नहीं, तो में मौत की दावत आज करता हूँ,
दुआ है मेरी तू खुश रहे, चाहे किसी और की बाँहों में,
आखिर में तुझसे बेपानाह प्यार जो करता हूँ......
में तन्हाई से सिर्फ तुम्हारी ही बात करता हूँ,
लबों पर आते आते क्यों रुक गयी दिल की बात,
दिल से यह सवाल बार बार करता हूँ,
आखिर क्यों न समझ सका तू मेरी खामोश जुबां,
में तुझको नहीं अपनी नजरो को गुन्हेगार करता हूँ,
जुल्म मोह्हबत एकतरफा करने का है,
में खुद के लिए सजा ए तन्हाई मुक़र्रर करता हूँ,
तेरे सिवा कोई और चाहत नहीं इस कायनात में मेरी,
अब तू नहीं, तो में मौत की दावत आज करता हूँ,
दुआ है मेरी तू खुश रहे, चाहे किसी और की बाँहों में,
आखिर में तुझसे बेपानाह प्यार जो करता हूँ......
No comments:
Post a Comment