Sunday, 27 November 2011

ज़रा एक तस्वीर तुम्हारी देते जाओ....

जाते हो सनम तुम, बेशक जाओ,
पर लौट के आने का वक़्त बतलाते जाओ,

न जाने फिर कब मौका मिले मिलने का हमें,
ज़रा एक तस्वीर तुम्हारी देते जाओ,

तेरी कलाई मुझे यूँ सूनी अच्छी नहीं लगती,
जो कंगन खरीदे थे साथ वो पेहेनते  जाओ,

न जाने किस राह पर मिल जाएँ बुरी नजर वाले,
अपने रुखसार पर काजल लगाते जाओ,

कोई और न देखे तुम्हे मोह्हबत से, मेरे सिवा,
तुम जुल्फों को अपनी बांधते जाओ,

बहुत दिलफरेब होती है यह नजरे,
तुम अपनी  निघाओं को झुखाते जाओ,

डर सताएगा मुझको तेरी खेरियत का हमेशा,
हिफाज़त के लिए मेरे नाम का सिन्दूर लगाते जाओ.....

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