Sunday, 6 November 2011

न जाने क्या जादू था उनकी आँखों में.....

फितरत ए मोह्हबत बदल न पाए,
दिल्लगी को हम रोक न पाए,

खुद को लाख संभाला, पर संभल न पाए,
उनके इज़हार ए मोह्हबत पर इनकार कर न पाए,

न जाने क्या जादू था उनकी आँखों में,
की उनकी आँखों से नजरे हटा न पाए,

गुनाह ए इश्क, फिर कर बेठे हम,
यारों हम सुधर न पाए,

अब इश्क किया है, तो उसे निभाएंगे भी,
फिर क्यों न चाहे यह  ज़माना ही रूठ जाये.....

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