तू मकतल पर खंजर छोड़ गयी भूले से,
मेरी मौत का इलज़ाम तेरे सर तो आना ही था,
क्या शिकवा उससे करना बेवफाई का,
जो हमेशा से सिर्फ एक बेगाना ही था,
उसका नया चेहरा हर रोज सामने आता था,
कैसे कह्दूं फिर की अभी अभी तो उसे पहचाना ही था,
उसको क्यों फिकर होगी मेरे गमो की,
वो जो भी था, लेकिन एक अनजाना ही था,
भूल जायेंगे उसे रफ्ता रफ्ता एक दिन,
आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था.....
मेरी मौत का इलज़ाम तेरे सर तो आना ही था,
क्या शिकवा उससे करना बेवफाई का,
जो हमेशा से सिर्फ एक बेगाना ही था,
उसका नया चेहरा हर रोज सामने आता था,
कैसे कह्दूं फिर की अभी अभी तो उसे पहचाना ही था,
उसको क्यों फिकर होगी मेरे गमो की,
वो जो भी था, लेकिन एक अनजाना ही था,
भूल जायेंगे उसे रफ्ता रफ्ता एक दिन,
आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था.....
No comments:
Post a Comment