यह मेरे लहजे में तकल्लुफ्फ़ ना होती,
गर मुझे किसी से मोह्हबत ना होती,
में बेशक मर गया होता उसके जाने के बाद,
गर मेरे घर में सियासत की बात ना होती,
कुछ तो बात थी उसकी आँखों में "अंकित",
वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती,
मोह्हबत में मोह्हबत का जुदा होना भी जरुरी है,
वरना खुदा तेरी कभी इबादत ना होती,
में भी उसकी तरह आज यार बदलता रहता,
गर मेरे ज़हन में वफ़ा गिरफ्त ना होती.....
गर मुझे किसी से मोह्हबत ना होती,
में बेशक मर गया होता उसके जाने के बाद,
गर मेरे घर में सियासत की बात ना होती,
कुछ तो बात थी उसकी आँखों में "अंकित",
वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती,
मोह्हबत में मोह्हबत का जुदा होना भी जरुरी है,
वरना खुदा तेरी कभी इबादत ना होती,
में भी उसकी तरह आज यार बदलता रहता,
गर मेरे ज़हन में वफ़ा गिरफ्त ना होती.....
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