Sunday, 25 March 2012

"में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा"........

कुछ ऐसा खोया उसकी निगाहों में,
की गीत मोह्हबत के गाता रहा,

कुछ इतनी कातिलाना थी अदाएं उसकी,
की किस्सा क़यामत का सबको सुनाता रहा,

उसने जो तिरछी नजर से देखा मुझे,
में खुद को गिरने से संभालता रहा,

जो हटाया उसने चेहरे से नकाब अपने,
में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा,

जो थामे थे उसने कभी हाथ मेरे,
वो हाथ दिल पर रख के दिल को बहलाता रहा,

कोई तोड़ ना दे दिल उसका कहकर बेवफा,
इसलिए में खुद को गुन्हेगार उसका बतलाता रहा,

कुछ ऐसा समाया था वो मेरी आँखों में "अंकित",
की दूर जाकर भी मेरे अश्कों में वो नजर आता रहा.........

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