Sunday, 25 March 2012

वो रात .....

उसके सुर्ख होंठों का झरना मेरे होंठों पर गिरता रहा,
चांदनी सा बदन मेरे आघोष में टूटता रहा,
ना उसने कोई बात करी ना मैंने अपने लब हिलाए,
मोह्हबत का समां ख़ामोशी से बनता रहा,
चूड़ियों से भरे हाथ उसके मेरे बदन पर मचलते रहे,
उसकी बिंदिया चमकती रही, उसका गजरा महकता रहा,
बेसुध होकर एक दुसरे से मोह्हबत करी हमने,
एक दुसरे की साँसों से मोह्हबत का गीत बनता रहा,
उसकी जुल्फें मेरे चेहरे पर रेंगने लगी,
चाँद शर्मा कर बादलो के बीच छुपता रहा,
वो काली घनी रात ने छुपाया हमें एक दुसरे से,
आँखें बंद रही और प्यार होता रहा,
उसने जब मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे,
मोह्हबत का सैलाब उफनता रहा,
उस रात कोई शिकवा या शिकायत ना की हमने एक दुसरे से,
बस मोह्हबत का कारवां चलता रहा,
बहुत खूबसूरत वो रात गुजरी थी "अंकित",
जिस रात वो पूरी तरह मेरे आघोष में टूटता रहा.....

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