Sunday, 25 March 2012

मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती.....

मेरा इश्क मंसूब-ए-वफ़ा है, यह तू क्यों नहीं समझती,
मेरी तालीम, तालीम-ए-मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

खेलेगी तेरे दिल के साथ जी भर के, मुस्कुराते हुए,
मतलबी है यह सारी दुनिया, यह तू क्यों नहीं समझती,

चाहत है की तुझको छुपा के रखूं आँखों में अपनी,
बगावत के लिए तैयार है ज़माना, यह तू क्यों नहीं समझती,

जब जब तुझे देखा तब तब तेरी इबादत की है मैंने,
मेरी मोह्हबत पाक मोह्हबत है, यह तू क्यों नहीं समझती,

अब ख़त्म भी कर अपने हुस्न की नुमाइश करना महफिलों में,
पिघल जायेगा मोम की तरह हुस्न तेरा, यह तू क्यों नहीं समझती......

बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने.....

निगाह मिलते ही निगाह झुका ली उसने,
बड़ी दिलचस्प मोह्हबत बयां की उसने,

लडखडा रहें हैं जबसे मिलें है उनसे,
लगता है आँखों से पिला दी उसने,

बुझे चिराग दिल के फिर से जल उठे,
यह किस तरह की हवा चला दी उसने,

दरो-दीवार पर लिखा लहू से नाम मेरा,
बड़ी खूबसूरत सी वफ़ा की उसने.......

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,.....

तेरे साथ गुजारने को एक रात मिल जाये,
चाँद को जलाने के लिए तेरा रुखसार मिल जाये,
यह जो जाम बात करता है मदहोशी की बार बार,
जवाब देने को इसे, तुझसे मेरी निगाहें मिल जाये,
बहुत खुश होती है यह हवा अँधेरा करने पर,
तेरे चेहरे के चिराग से उलझे तो इसे पता चल जाये,
जब तू चले बलखाते हुए ज़मीन पर,
तो फलक ज़मीन से बेहिसाब जल जाये,
जब तू अंगडाई ले अपने शबिस्तान मे कभी कभी,
तो बहार तेरे घर में आने को मचल जाये,
कुछ इतनी खूबसूरत बनावट है उसके बदन की "अंकित",
की जिससे लिपटे वो,उसे जन्नत मिल जाये.......

कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ.....

करूँ भी या न करूँ, इस सोच में हूँ की,
उससे इकरार-ए-वफ़ा कैसे करूँ,

ना जाने कब उसके ज़ेहन में सियासत मचल जाये,
आखिर में उसपे भरोसा कैसे करूँ,

अभी अभी तो एक दर्द से उभरा है दिल मेरा,
फिर से इसे जख्मो के हवाले कैसे करूँ,

सुना है वो फिरसे करेगा मोह्हबत इस जिंदगी के बाद,
कोई बतलाये में खुद को क़यामत कैसे करूँ......

यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं.....

मंजिल पाने की तलब में हमसफ़र बदल लेते हैं,
यहाँ लोग कदम कदम पर रास्ता बदल लेते हैं,

उससे कहदो की ज़रा सोच समझकर लगाये दिल किसी से,
वक़्त गुजरता नहीं की लोग दिल बदल लेते हैं,

एक महखाने से उठे तो दुसरे में जा बेठे,
पैमाने के साथ साथ लोग साकी बदल लेते हैं,

मत कर किसी की दोस्ती का यकीन इस ज़ालिम दुनिया में "अंकित",
यहाँ मंसूबें बदलते ही लोग दोस्त बदल लेते हैं......

पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं.....

ना आसमान ना सितारे और ना यह चाँद,
पूरी कायनात में तुझसे खूबसूरत कुछ भी नहीं,

महकाने की बात करूँ या करूँ शराब की,
जो सुरूर तेरी आँखों में है, वो सुरूर कहीं भी नहीं,

पायल की रुनझुन हो या फिर कंगन की खनक,
जो मोह्हबत तेरी ख़ामोशी में है, वो कहीं भी नहीं,

अंदाज़ ए हूर हो या फिर नूर ए चाँद,
जो सादगी तेरे चेहरे में है वो कहीं भी नहीं,

काली सी घनी रात हो या फिर कोई चांदनी रात,
तेरी जुल्फों के सायें से खूबसूरत कुछ भी नहीं,

बहारों का मौसम हो या फिर किसी कलि का खिलना,
तेरे लहजे से मासूम इस जहाँ में कुछ भी नहीं.......

लहू इतना बहा की उससे उसका हमाम कर दिया.....

निगाह-ए-इश्क ने यह कैसा काम कर दिया,
देखा नहीं उसे की लोगो ने बदनाम कर दिया,

उसकी मोह्हबत में खुद से इस कदर हारे,
की खुद के दिल ने बेधकल दिल से सरे-आम कर दिया,

उस रात मेरा क़त्ल बहुत दर्दनाक था,
लहू इतना बहा की उससे उसका हमाम कर दिया,

मेरी वफ़ा का सलूक ऐसा मिला मुझे,
की मरने पर मेरे उसने जारी इनाम कर दिया,

दी है तकलीफ खुद को उसके इश्क में इस तरह "अंकित",
खाना छोड़ कर हिस्से अपने जाम कर दिया.....

वो रो रही होगी.....

मुझसे बिछुड़ के वो भी रो रही होगी,
आंसुओं से कपडे भिगो रही होगी,
बंद होगी जब वो अकेले कमरे में,
दीवारों पर मेरा नाम लिख रही होगी,
तन्हाई की उसको आदत नहीं बिलकुल भी,
मेरे ख्वाबों की ताबीर कर रही होगी,
मुद्द्तों हो गयी एक दुसरे से मुलाकात नहीं हुई,
मेरे खतों को पढ़कर अपना जी भर रही होगी,
पाक मोह्हबत है हमारी इस नापाक ज़माने में,
रो रो कर "माँ" को समझा रही होगी,
नादान है अभी थोड़ी, पागल भी प्यार में,
अपने जिस्म को वो चोट दे रही होगी,
खुद सह रही है बेहिसाब दर्द अभी,
लेकिन मेरे हिस्से ख़ुशी की दुआ कर रही होगी,
दलीलें हमारी पाक मोह्हबत के किस्सों की,
सिसक सिसक के "भाई" को सुना रही होगी,
कोई नहीं सुन रहा होगा उसकी फ़रियाद,
वो मेरे आने की राह देख रही होगी,
क्या "दर्द" ही है अंजाम मोह्हबत का,
खुदा से यह सवाल बार बार कर रही होगी,
या रब जवाब दे उसके सवाल का,
वो तेरा "नहीं" सुनने को तरस रही होगी.......

"में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा"........

कुछ ऐसा खोया उसकी निगाहों में,
की गीत मोह्हबत के गाता रहा,

कुछ इतनी कातिलाना थी अदाएं उसकी,
की किस्सा क़यामत का सबको सुनाता रहा,

उसने जो तिरछी नजर से देखा मुझे,
में खुद को गिरने से संभालता रहा,

जो हटाया उसने चेहरे से नकाब अपने,
में अपने सर को उसके आगे झुकाता रहा,

जो थामे थे उसने कभी हाथ मेरे,
वो हाथ दिल पर रख के दिल को बहलाता रहा,

कोई तोड़ ना दे दिल उसका कहकर बेवफा,
इसलिए में खुद को गुन्हेगार उसका बतलाता रहा,

कुछ ऐसा समाया था वो मेरी आँखों में "अंकित",
की दूर जाकर भी मेरे अश्कों में वो नजर आता रहा.........

"होली" .....

होली के रंग फीके पड़ गए
अब नहीं जचता कोई फागुन,
मुझको बतला के तो जाता
क्या करूँ में तेरे बिन,
तरस गए यह गाल मेरे
तेरे हाथो के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

तन्हाई में जिए बहुत हैं,
पर तनहा होली खेलें कैसें,
दर्द का मेरे एहसास करले,
खेल संग होली मेरे जीने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

अब कोई होली की टोली में,
नाचने का मन नहीं करता है,
नशा भांग का चड़ता नहीं है
तेरे दो नैनो के बिन,
मुझमे सुरूर चढाने को आ,
नशीला मुझको करने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए,

आ की तुझको बाँहों में फिर से में यूँ क़ैद करूँ,
तेरे गोरे गालों को अपने हाथो से रंगूँ,
खो बेठुं सब सुध बुध अपनी
बस तुझको में प्यार करूँ,
फागुन की मस्ती में पागल होकर तुझसे प्यार करूँ,
समझ ले मेरे एहसासों की पावन सी कहानी को,
फिर चूम ले मेरे गलों को
मस्ती में जीने के लिए,
अब तो मिलजा तू इस होली पर मुझको रंगने के लिए.......

"मैं मुस्कुरा के उसके सामने आइना रख देता हूँ"....

वो पूछती है मुझसे, की मैं क्या हूँ,
में फूल सजा कर आगे उसके, सर को झुका देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की मेरी कौनसी अदा लुभाती है तुम्हे,
में सहम के उसकी जुल्फें आँखों पर गिरा देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की यह मोह्हबत क्या है,
मैं मुस्कुरा के उसके सामने आइना रख देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की क्या बात पसंद है मेरी तुम्हे,
में उसके लबों पर हाथ रख उसे खामोश कर देता हूँ,

वो पूछती है मुझसे, की बिछुड़ गए तो क्या करोगे,
में रोते हुए उसे कब्रिस्तान दिखा देता हूँ .......

"शराब".....

चूमता हूँ प्याला जीने के लिए,
में पीता नहीं पीने के लिए,
उसकी याद जब जब आती है,
जाम पर नजर चली जाती है,
हलक से उतरते ही शराब,
चारो तरफ उसकी तस्वीर नजर आती है,
उदासी में हूँ या ख़ुशी में,
साथ यह हमेशा निभाती है,
तुझसे तो अच्छी यह शराब है,
इससे रूठ कर जाऊँ भी तो,
बार बार मुझे मनाने आती है.....

एक खुदा है जो दीखता भी तो नहीं......

बहाने क्या बनाऊ तुझसे मिलने के लिए,
कोई मेरी फ़रियाद सुनता भी तो नहीं,

एक दुसरे से जुदा होकर जीना मुश्किल है,
लेकिन यह बात ज़माना मानता भी तो नहीं,

बंदगी किसकी करूँ तुझे पाने के लिए,
एक खुदा है जो दीखता भी तो नहीं,

कैसे सुने कोई तड़प इस दिल की,
यह महफिलों में चीखता भी तो नहीं,

आखिर कैसे न सोचूं तुझसे मोह्हबत के बारे में,
यह मौसम बहार का रुकता भी तो नहीं,

वो तो चल दिए कहकर की मुलाकात ख्वाबों में करेंगे,
कोई बतलाये उन्हें, "अंकित" उनकी याद में सोता भी तो नहीं.......

सोने न दिया मुझे तेरे वस्ल के सवालातों ने.....

एक उम्र गुजर दी तनहा रातों में,
नम कर दी आँखें तेरे खयालातों ने,

बिस्तर की सिलवटों ने सारे राज़ बयां कर दिए,
सोने न दिया मुझे तेरे वस्ल के सवालातों ने,

ना जाने उसकी बातों ने क्या जादू बिखेरा दिल पर,
की मोह्हबत करा दी उनसे दो रोज की मुलाकातों ने,

उसके होंठों पर चमक रही थी मोती की तरह बूँदें,
क़यामत ढा दी थी उन धीमी धीमी बरसातों ने.......

"तालीम-ए-इश्क तुने सीखी नहीं यह सुनकर लौट गयी है".....

वो मुझे देखने के लिए कई बार जन्नत तक गयी है,
तालीम-ए-इश्क तुने सीखी नहीं यह सुनकर लौट गयी है,

उसने कई बार मुझे बेसुध होकर पुकारा ठुकराने के बाद,
लगता है वो बेवफाई करते करते थक सी गयी है,

अब उसका हुस्न भी नुमाइश के लिए नहीं मचलता,
लगता है उसके दिल को मोह्हबत हो गयी है,

ना जाने कितने दिलों के साथ खेला है उसने बड़ी दिलचस्पी से,
की अब उसके आईने को भी उसके चेहरे से नफरत हो गयी है,

शोक-ए-बेवफाई ने उसे तबहा कर डाला,
की सारी कायनात उससे रूठ सी गयी है,

"अंकित" भूल जा सरे दिए गम उसके और उसको जिंदगी बक्श दे,
देर से ही सही लेकिन उसे मोह्हबत से मोह्हबत तो हो गयी है.......

"वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती"......

यह मेरे लहजे में तकल्लुफ्फ़ ना होती,
गर मुझे किसी से मोह्हबत ना होती,

में बेशक मर गया होता उसके जाने के बाद,
गर मेरे घर में सियासत की बात ना होती,

कुछ तो बात थी उसकी आँखों में "अंकित",
वरना तेरी शायरी इतनी खूबसूरत ना होती,

मोह्हबत में मोह्हबत का जुदा होना भी जरुरी है,
वरना खुदा तेरी कभी इबादत ना होती,

में भी उसकी तरह आज यार बदलता रहता,
गर मेरे ज़हन में वफ़ा गिरफ्त ना होती.....

अपनी मांग में मेरा सिन्दूर भर के मुझे तर कर दे......

कुछ वक़्त तेरे हिस्से का मेरे हिस्से कर दे,
मुझको मेरे गमो से बेखबर कर दे,

बहुत तडपा हूँ में चाँद को देखने के लिए,
नकाब चेहरे से हटा कर थोड़ी चांदनी इधर कर दे,

महफूज़ रखूँगा में तुझको मोह्हबत में हमेशा,
अपनी मांग में मेरा सिन्दूर भर के मुझे तर कर दे,

तनहा चलते चलते थक सा गया हूँ में,
हाथो में हाथ डाल इस तरह, की मेरे हिस्से भी हमसफ़र कर दे......

खूबसूरत किया है तुने अंजाम मेरा....

अपने लबो से लेकर तुने नाम मेरा,
खूबसूरत किया है तुने अंजाम मेरा,

तेरी इबादत में गुजार दूं जिंदगी सारी,
अब इसके अलावा नहीं कोई काम मेरा,

कुछ ऐसी शिद्द्त से तुने लगाया सीने से मुझे,
की याद आया यही तो था मुकाम मेरा,

झुकी झुकी नजरो से तुने पुकारा मुझे,
सिर्फ तुने ही तो किया है एहतराम मेरा,

कुछ इस कदर से हुई मोह्हबत खुद के नाम से "अंकित".
की जचता नहीं अब कोई मुझे हमनाम मेरा.......

वो रात .....

उसके सुर्ख होंठों का झरना मेरे होंठों पर गिरता रहा,
चांदनी सा बदन मेरे आघोष में टूटता रहा,
ना उसने कोई बात करी ना मैंने अपने लब हिलाए,
मोह्हबत का समां ख़ामोशी से बनता रहा,
चूड़ियों से भरे हाथ उसके मेरे बदन पर मचलते रहे,
उसकी बिंदिया चमकती रही, उसका गजरा महकता रहा,
बेसुध होकर एक दुसरे से मोह्हबत करी हमने,
एक दुसरे की साँसों से मोह्हबत का गीत बनता रहा,
उसकी जुल्फें मेरे चेहरे पर रेंगने लगी,
चाँद शर्मा कर बादलो के बीच छुपता रहा,
वो काली घनी रात ने छुपाया हमें एक दुसरे से,
आँखें बंद रही और प्यार होता रहा,
उसने जब मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे,
मोह्हबत का सैलाब उफनता रहा,
उस रात कोई शिकवा या शिकायत ना की हमने एक दुसरे से,
बस मोह्हबत का कारवां चलता रहा,
बहुत खूबसूरत वो रात गुजरी थी "अंकित",
जिस रात वो पूरी तरह मेरे आघोष में टूटता रहा.....

आँखों में अपनी कई ख्वाब सजा कर लाया हूँ.....

सजदा करने तेरी चोखट पर आया हूँ,
अरमानो के सायें में तुझसे मिलने आया हूँ,

अब मुझको भी चैन की नींद सो लेने दे,
आँखों में अपनी कई ख्वाब सजा कर लाया हूँ,

अब तो मुझपर रहम कर दे मोह्हबत का,
एक अरसे से दिल को सिर्फ तेरे नाम से बहलाया हूँ,

तू क्यों नहीं आता फ़क़त तेरी याद आ जाती है,
क्या अपना पता सिर्फ तेरी यादों को बतलाया हूँ,

बेशक तू मुझे नवाज दे सजा-ए-मौत,
लेकिन गौर कर की अपनी जिंदगी में तुझको बनाया हूँ......

आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था..........

तू मकतल पर खंजर छोड़ गयी भूले से,
मेरी मौत का इलज़ाम तेरे सर तो आना ही था,

क्या शिकवा उससे करना बेवफाई का,
जो हमेशा से सिर्फ एक बेगाना ही था,

उसका नया चेहरा हर रोज सामने आता था,
कैसे कह्दूं फिर की अभी अभी तो उसे पहचाना ही था,

उसको क्यों फिकर होगी मेरे गमो की,
वो जो भी था, लेकिन एक अनजाना ही था,

भूल जायेंगे उसे रफ्ता रफ्ता एक दिन,
आखिर तो वो मोह्हबत का एक अफसाना ही था.....

About Me

My photo
I am very sensative and emotional type of guy, and i can't live without 3 things my love,poetry,my friends.