Friday, 27 January 2012

बस एक रस्म वफ़ा की वो निभाना भूल गया.......

बेदर्द ज़माने की सारी रस्मे याद थी उसे,
बस एक रस्म वफ़ा की वो निभाना भूल गया,

क्या गिला, क्या शिकवा, क्या शिकायत उससे करना,
जो अपना नाम मेरे दिल पर लिखकर मिटाना भूल गया,

कभी तन्हाई के साए में याद बनकर चला आता था,
वो शख्स जो आज मेरे घर का पता ठिकाना भूल गया,
यह कौनसे गम का पैमाना खाली किया उसने,
यह कौनसा दर्द है जो वो मुझे देना भूल गया,
मेरे कानो में नहीं गूंजती अब उसकी कोई आवाज,
लगता है वो मुझसे बिछुड़ के खिलखिलाना भूल गया,
हमसे क्या जुदा हुआ की कोई कदरदान नहीं उसका,
यूँ हुआ की वो अब अपने हुस्न पर इतराना भूल गया.......

Tuesday, 24 January 2012

तेरे होंठों पर अपने होंठों से प्यार लिख दूँ.....

आ की तुझे बाँहों में क़ैद कर लूँ,
तेरे होंठों पर अपने होंठों से प्यार लिख दूँ,

सितारों की चाहत है तुझे या चाहत चाँद की,
तू कहे तो में उन्हें तेरा गुलाम कर दूँ,

फ़क़त तेरे इश्क से बढ़कर कुछ भी नहीं ज़माने में,
तेरी मोह्हबत के खातिर में खुद को बदनाम कर दूँ,

अब तो मान जा की तुझे भी मुझसे मोह्हबत है,
या में तेरी किताब में छुपी तस्वीर सरेआम कर दूँ,

सुना है की तुझे इस ज़माने का खौफ बहुत है,
तू कहे तो में इनका किस्सा तमाम कर दूँ........
   

Monday, 23 January 2012

इन निगाहों को मोह्हबत का राज़ छुपाना नहीं आता है......

दूर तेरी यादों से जब तन्हाई में बेठता हूँ,
कतरा तेरी याद का अश्क बनकर चला आता है,

रोती तो तू भी होगी मुझसे जुदा होकर,
तभी तो मेरे अश्कों पर नाम लिखा तेरा आता है,

गर ज़रा भी इल्म नहीं तुझे मेरे ठिकाने का,
फिर क्यों तेरे नाम का ख़त रोज मेरे दर पर आता है,

हर दफे आंसूं बहाकर कहा मोह्हबत नहीं तुमसे,
बहुत ही खूबसूरत सा झूठ तुम्हे बोलना आता है,

निगाहों से निगाहों को मिलने न देना भूले से भी,
इन निगाहों को मोह्हबत का राज़ छुपाना नहीं आता है,

रख लबो पर नाम "अंकित" और हाथो में तस्बीह (माला),
फिर कहती हो की मुझे इज़हार-ए-मोह्हबत करना नहीं आता है........   

Thursday, 19 January 2012

यह आँखें भीगी रही रात भर.......

तेरे आने की आस में जागी रात भर,
यह आँखें भीगी रही रात भर,

न तुम आये ना आया कोई ख़त तुम्हारा,
बेफिजूल में ना नींद आई रात भर,

नींद से बद्तमीज़ी न करते तो ही अच्छा होता,
यूँ आँखें तो न सूजी होती रात भर,

तू तो सिमटा रहा किसी और की बाँहों में,
और मैं करवटे बदलता रहा रात भर,

देख सूजी आँखें और सिलवटें बिस्तर की,
माँ भी पूछ बेठी, बेटा सोया नहीं क्या रात भर......    

Wednesday, 18 January 2012

"शायर"

हर एक पल ज़हर पीते हैं, शायरी करते हैं,
बात बात पर हम मोह्हबत की बात करते हैं,
गमो में हमारे रोने को कोई भी नहीं,
शिकायत हम इस बात की कभी नहीं करते हैं,
सजती है महफिलें हमारे ही ग़मो से,
जहाँ शेर-ए-दर्द पर सब वाह वाह करते हैं,
सरे-कु-ए-यार (प्रेमिका की गली में) पर दिन रात गुजार दें,
हर कदम पर हम सिर्फ आशिकी करतें हैं,

जो दिल में छुपा बेठा है बस वो खुश रहे,
उस शख्स के लिए हम जिंदगी बर्बाद करते हैं,

फिकर उसको नहीं हमारे आंसुओं की,
फिर भी हम उसी से प्यार करतें हैं,

ग़म-ए-मोह्हबत हो या लुत्फ़-ए-मोह्हबत,
हम हर बात का शुक्रिया अदा करते हैं,

जितना चाहो खेलो हमारी तकदीर से,
हम लोग तकदीर को भी नजरअन्दाज़ करते हैं,
 
न फिकर जान की, न खोफ तबाही का,
मूँद कर अपनी आँख हम मोह्हबत करते हैं.........

मेरा यह दिल भी मुझे अब पराया सा लगता है.....

जब जब कोई निगाहों से बात करता है,
क़यामत का मंजर सामने आने लगता है,

न जाने क्यों पूछती है मोह्हबत वोही सवाल,
जिसका जवाब तलाशने में ज़माना लगता है,

हर वो शख्स दुश्मन नजर आता है मुझे,
जो मेरे "शेर-ए-दर्द-ए-मोह्हबत" पर वाह वाह करता है,

फ़क़त एक शख्स न मिला तो धड़कना नहीं चाहता,
मेरा यह दिल भी मुझे अब पराया सा लगता है,
आखिर किसे पूछें हम अंजाम-ए-मोह्हबत "अंकित",
मोह्हबत के नाम पर हर शख्स आँसूं बहाने लगता है......

Monday, 16 January 2012

तभी वो किस्से ज़माने के, एक माँ की तरह समझाती थी..........

आँखें तो उसकी भी नाम हो जाती थी,
जब कभी बात जुदाई की आती थी,

आखिर कैसे कह दूँ में उसे बेवफा,
वो फूल सजदे में, मेरे ही नाम के चढ़ाती थी,

मजबूरियों से हारी है वो और कुछ भी नहीं,
तभी वो किस्से ज़माने के, एक माँ की तरह समझाती थी,

कैसे मान लूँ की उसे अब मेरा चेहरा पसंद नहीं,
जो मुझे कभी अँधेरे में भी पहचान जाती थी,

चाहत उसकी भी थी मुझे हमसफ़र बनाने की,
जब कभी कड़कती थी बिजली, वो मेरी बाँहों में सिमट जाती थी.......... 

Friday, 13 January 2012

पुरवईया......

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया......
रैना बीते सावन भादो,
रैना बीते सावन भादो,
प्यासी है हर नदिया नदिया,

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
रतिया रतिया तनहा रतिया,
रतिया रतिया तनहा रतिया,
नैना खेले आँख मिचोली,
रतिया रतिया तनहा रतिया,
तेरी सुध में घुमुं दर दर,
मूंदे अपनी अँखियाँ अँखियाँ, 

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
आस में थारी बीती रतिया,
आस में थारी बीती रतिया,
जोगन बन बन पुकारूँ सैयां,
आस में थारी बीती रतिया,
रोक परिंदा को में छत पर,
करूँ बस थारी बतिया बतिया, 

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......
चोखट थारी मारा मंदिर,
चोखट थारी मारा मंदिर,

देवता तू मैं हूँ पुजारिन,
चोखट थारी मारा मंदिर, 
करूँ आरती दिन और रतिया,
और निहारूं थारी सुरतिया........

चले रे चले रे, चले, चले रे चले रे, चले,
चले रे चले रे चले पुरवईया ......



Friday, 6 January 2012

"सियासतदार".........

हक की नहीं बात सियासत की करने आयें हैं,
जो लोग मेरी गली में पहली दफे आयें हैं,

सिक्कों की चाहत, और कुर्सी के अरमान उनको,
जो लोग घर से निकल कर देश बचाने आयें हैं,

अन्दर आने को तोड़ देते थे जो बंद दरवाजे,
वो लोग आज खुले दरवाजो को खटखटाने आयें हैं,

होता है कैसा दर्द गरीब का जिन्हें मालूम नहीं,
वो लोग आज उसके दर्द बाटने आयें हैं,

तस्वीरो पर चढ़नी चाहिए जिनके माला,
वो लोग खुद गले में माला पहनकर आयें हैं,

सियासत की तलब तो देखो कैसी मचल रही है,
की वो सौदा देश का एक बोतल से करने आयें हैं......  

Thursday, 5 January 2012

साजिश ए मोह्हबत........

जब से उनसे मुलाकात होने लगी है,
खूबसूरत यह शाम लगने लगी है,

इन गुस्ताख निगाहों का रवैया तो देखो,
की उनकी आँखें अब कोहिनूर लगने लगी हैं,

अल्फाजो का साहिर(जादू) कुछ ऐसा हुआ उनके,
की उनकी जुबां अब शायरी लगने लगी है,

वो जाते नहीं की फिर होने लगती है मिलने की चाह,
हर मुलाकात जैसे पहली मुलाकात लगने लगी है,

उनसे क्या मिलें की भूल गए जामने को,
यह दुनिया अब हमें बेगानी लगने लगी है,

आँखों में चमक और मुस्कराहट लबों पर,
यह साजिश हमें साजिश ए मोह्हबत लगने लगी है.....  

Tuesday, 3 January 2012

तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे........

सही नहीं जाती अब यह तन्हाई हमसे,
यूँ कर के यह रात कुछ छोटी कर दे,

अगर सजदे क़ुबूल करने का वक़्त नहीं तुझे,
ए खुदा तो यह जिंदगी खत्म कर दे,

आखिर तो एक रोज छोडनी है यह दुनिया भी,
तू वक़्त से पहले ही मुझे फ़ना कर दे,

एक उम्र गुजर दी तन्हाई के सायें में मैंने,
अब इस जिंदगी की क़ैद से मुझे रिहा कर दे,

जिंदगी से डर नहीं मौत से प्यार है मुझे,
तू मेरे हक में मेरी मोह्हबत इख्तियार कर दे,

एक रोज तो दिल भी पूछ बेठेगा, आखिर यह दर्द क्यों
उसके सवाल से पहले यह धड़कन बंद कर दे,

उसका वादा था की वो नहीं देखेगा मेरा चेहरा कभी,
उसे हक है की वो मेरी मौत पर वादाखिलाफी कर दे.......
 

Sunday, 1 January 2012

सेहर होते ही सर को झुखना पड़ता है.......

रात है तो रात ही रहने दो,
अँधेरे में गरीब को सुकून मिलता है,

रात के अँधेरे में छुप जाता है मुल्क मेरा,
उजाले में हर शख्स को चिथड़ो का जवाब देना पड़ता है,

रात के वक़्त तान खड़ा रहता है सीना,
सेहर होते ही सर को झुखना पड़ता है,

मोह्हबत है अँधेरे से मेरे मुल्क को,
उजाले में तो हर एक शख्स इसे किसी का गुलाम लगता है,

छुपा लेता है अँधेरे में अपने अश्क,
उजाले में मुल्क मेरा आँखें खोलने से डरता है......    

तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं.......

मोह्हबत के दिए जब ज़ख्म भरने लगते हैं,
उनकी यादों के सायें फिर सामने आने लगते हैं,

जब जब सोचा की नहीं देखे उन्हें,
तब तब वो अपनी जुल्फें बिखेंरने लगते हैं,

हर उस दोस्त से दुश्मनी है अब हमारी,
जो तेरी गली से गुजरने लगते है,

आखिर कैसे सोचूं तुझसे दूर जाने के लिए,
तुझे एक पल न देखूं तो आंसूं आने लगते हैं,

ज़माने से कोई चाहत नहीं अब हमारी,
ज़ख्म भरता नहीं की, फिर मोह्हबत की बात करने लगते हैं........ 

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