Monday, 31 October 2011

ख़ामोशी....

अबके यूँ हुआ तो जान जाएगी,
तुम्हारी ख़ामोशी हमें मार जाएगी,

कुछ तो कहो, चाहे काफिर ही सही,
इतना रहम करो, और तोड़ दो यह ख़ामोशी,

देखो की जलसा खड़ा हुआ है बहार आशिकों का,
क़यामत ढा रही है तुम्हारी ख़ामोशी,

थक गया हूँ तुम्हारी निगाहों से बात करते करते,
अब हमको अच्छी नहीं लगती यह ख़ामोशी,

कई साल बीत गए की खुल के बारिश नहीं हुई,
तुम बोलो तो बरसात भी हो जाये, इसी बहाने तोड़ो ख़ामोशी,

भूल गए हैं अपना नाम भी अब हम,
याद दिलाओ, यह होंठ हिलाओ, और तोड़ो ख़ामोशी,

तुम्हारा हुस्न भी रूठा रूठा नजर आ रहा है तुमसे,
की अब तुम पर जचती नहीं है यह ख़ामोशी.....

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