Monday, 24 October 2011

गरीब माँ की दिवाली....

दिवाली है आने वाली, में बच्चो को कैसे समझाऊँगी, 
जब वो मांगेंगे नए कपडे , में उन्हें क्या कहकर बेहलाऊँगी,
वो नादाँ है उन्हें घर की हालत कैसे समझाऊँगी,
जब वो रोयेंगे पटाके के लिए, तो उन्हें किस बात से बेहलाऊँगी,

पैसे नहीं है तो कपडे कहाँ से लाऊंगी,
रूखा सूखा खाने वालो को, मैं मिठाई कैसे खिलाऊँगी ,
दिया जलने को तरस जाती हूँ, मैं अपना घर कैसे जग्मगाऊँगी,
जब देखेंगे बच्चे दुकानों पर मिठाइयाँ, तो वहां से उन्हें कैसे हटाउंगी,
आंसूं तो निकलेंगे मेरे उन मासूमो को देखकर,पर किस तरह में अपने आंसूं छुपआउंगी,
पिछली बार तो बहला लिया था उन्हें अगली दिवाली का बहाना बनाकर,
अबके बार क्या बहाना बनूंगी,

जब फूटेंगे पटाके हर घर के बहार, तो उनके कान कैसे बंद कर पाऊँगी,
जब देखेंगे वो सबके बदन पर नए कपडे,में उनकी आँखों को कैसे बंद कर पाऊँगी,

यह दिवाली भी पिछली दिवाली की तरह बीत जाएगी,
में उन्हें दिलासा देकर रूखा सूखा खिलाकर उनको सुलाकर,
अपनी तकदीर पर आंसूं बहाऊंगी.....


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