Monday, 31 October 2011

ख़ामोशी....

अबके यूँ हुआ तो जान जाएगी,
तुम्हारी ख़ामोशी हमें मार जाएगी,

कुछ तो कहो, चाहे काफिर ही सही,
इतना रहम करो, और तोड़ दो यह ख़ामोशी,

देखो की जलसा खड़ा हुआ है बहार आशिकों का,
क़यामत ढा रही है तुम्हारी ख़ामोशी,

थक गया हूँ तुम्हारी निगाहों से बात करते करते,
अब हमको अच्छी नहीं लगती यह ख़ामोशी,

कई साल बीत गए की खुल के बारिश नहीं हुई,
तुम बोलो तो बरसात भी हो जाये, इसी बहाने तोड़ो ख़ामोशी,

भूल गए हैं अपना नाम भी अब हम,
याद दिलाओ, यह होंठ हिलाओ, और तोड़ो ख़ामोशी,

तुम्हारा हुस्न भी रूठा रूठा नजर आ रहा है तुमसे,
की अब तुम पर जचती नहीं है यह ख़ामोशी.....

Friday, 28 October 2011

बातें करते करते उनसे मोह्हबत हो गयी.....

पहली मुलाकात में यह बात हो गयी,
बातें करते करते उनसे मोह्हबत हो गयी,

इतना प्यारा चेहरा था की हमसे गुस्ताखी हो गयी,
पहली दफा किसी को दोस्ती से पहले मोह्हबत हो गयी,

नजरे उठी उठकर झुकी,अदा उनकी भी दिलनशी हो गयी,
सिर्फ मुझे उनसे ही नहीं, उन्हें भी मुझसे मोह्हबत हो गयी,

बारिश हुई बिन मौसम के तो यह रजा हो गयी,
खुदा को भी मेरी मोह्हबत से मोह्हबत हो गयी,

आखिर किस सोच में बेठे बेठे लिखदी तुने यह "शायरी" "अंकित",
एक बार तो कर बेठे हो जिंदगी तबहा, क्या फिर से तबाही की इजाजत हो गयी....

Thursday, 27 October 2011

जिस शख्स से दिल लगाया वो इन अश्कों के काबिल न था.....

मोह्हबत की है तो  आंसुओं से तो खेलना ही था,
लेकिन, जिस शख्स से दिल लगाया वो इन अश्कों के काबिल न था,

बेबाक हो गए हम सारे ज़माने के सामने उसकी खातिर,
हमारी इस फितरत से उसे तो पाक होना ही था,

इतना भी ग़म सहना ठीक नहीं "अंकित",
कुछ गमो का भागिदार तो वो भी था,

ज़मीन से आसमान तक हिला दिया दुआओं से अपनी,
लेकिन वो रकीब था उसे हबीब होना ही न था,

चला गया था मेरा शहर छोड़ के, एक वक़्त बाद वापिस लौट आया,
वो बेवफा था उसे तनहा तो होना ही था,

अगर ना निकलता तू खामियां मुझमे किसी के कहने से,
तो तुझे यूँ तनहा कभी न होना था,

अब मुझे तेरी मोह्हबत की जरुरत नहीं,
मेरा दिल पाक था, मुझे किसी और का तो होना ही था.....

Monday, 24 October 2011

गरीब माँ की दिवाली....

दिवाली है आने वाली, में बच्चो को कैसे समझाऊँगी, 
जब वो मांगेंगे नए कपडे , में उन्हें क्या कहकर बेहलाऊँगी,
वो नादाँ है उन्हें घर की हालत कैसे समझाऊँगी,
जब वो रोयेंगे पटाके के लिए, तो उन्हें किस बात से बेहलाऊँगी,

पैसे नहीं है तो कपडे कहाँ से लाऊंगी,
रूखा सूखा खाने वालो को, मैं मिठाई कैसे खिलाऊँगी ,
दिया जलने को तरस जाती हूँ, मैं अपना घर कैसे जग्मगाऊँगी,
जब देखेंगे बच्चे दुकानों पर मिठाइयाँ, तो वहां से उन्हें कैसे हटाउंगी,
आंसूं तो निकलेंगे मेरे उन मासूमो को देखकर,पर किस तरह में अपने आंसूं छुपआउंगी,
पिछली बार तो बहला लिया था उन्हें अगली दिवाली का बहाना बनाकर,
अबके बार क्या बहाना बनूंगी,

जब फूटेंगे पटाके हर घर के बहार, तो उनके कान कैसे बंद कर पाऊँगी,
जब देखेंगे वो सबके बदन पर नए कपडे,में उनकी आँखों को कैसे बंद कर पाऊँगी,

यह दिवाली भी पिछली दिवाली की तरह बीत जाएगी,
में उन्हें दिलासा देकर रूखा सूखा खिलाकर उनको सुलाकर,
अपनी तकदीर पर आंसूं बहाऊंगी.....


Sunday, 23 October 2011

इंतज़ार...

इंतज़ार तुझे पाने का,
इंतज़ार तेरे नाम के साथ मेरा नाम सुने जाने का,
न जाने इस इंतज़ार की इन्तहा कहाँ है,
इब्तेदा तो तेरे मेरे पहले मिलन से हुई थी,

इंतज़ार तुझे अपनी बाहों में भर लेने का,
इंतज़ार तेरी जुल्फों में छुप जाने का,
इंतज़ार तेरी सुरीली आँखों में खो जाने का,
इंतज़ार तेरे चेहेरे को चूमने का,
यह इंतज़ार न जाने कब ख़तम होगा,
तेरा मेरा मिलन न जाने अब कब होगा,

इंतज़ार तुझे अपनी दुल्हन बनाने का,
इंतज़ार तेरे सुर्ख होंठों से शबनम चुराने का,
इंतज़ार तेरी रूह को पाने का,
इंतज़ार तेरी रूह को पके, उसकी इबादत करने का,
इस इंतज़ार की शमा को आके अब बुझा दे,
अबके बरस तू मुझे अपनी माँग का सिन्दूर बना ले....

Friday, 21 October 2011

वो परिंदा था उसका कोई एक आशियाना ही न था...

शिकवा या शिकायत आखिर करते तो क्या करते उससे,
उसने तो मुझे कभी अपना बनाया ही न था,

नजरे दूर तलक जाके तनहा लौट आती थी,
वो परिंदा था उसका कोई एक आशियाना ही न था,

बहुत मुददतों  बाद दिल ने समझा,
जो तेरी चाहत थी, उसने तो तुझे कभी गौर से देखा भी न था,

यह तो दस्तूर है मोह्हबत का अंकित,
की जिसको चाह है दिल से, उसे कभी अपना होना ही न था.......

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