Saturday, 3 September 2011

आलम-ए-तन्हाई.........

तुम अभी यहीं थे, अभी अभी चले गए,
दिल को कुछ ऐसी झूठी तस्सली देनी पड़ती है धड़कने के लिए,

ऐसे ऐसे मंजर नजर आते हैं बीते कल के,
की निगाहें छुपानी पड़ती है आंसूं छुपाने के लिए,

ज़रा दो कदम हमारे साथ चल दिए होते,
जन्नत नसीब हो जाती हमें उम्र भर के लिए,

बिखर गयी जिंदगी मेरी ताश के पत्तो की तरह,
एक रहगुजर चाहिए अब उसे समेटने के लिए,

मुझको तो खुदा ने बनाया है रेत मानिंद सा,
एक पत्थर दिल चहिये तुझ जैसा, दिलों को तोड़ने के लिए,

तुम आओगे, तुम आ सकते हो, पर तुम आना नहीं चाहते,
आखिर एक बेवफा भी तो होना चाहिये दुनिया में, बेवफाई जिंदा रखने के लिए............

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