Monday, 8 August 2011

अच्छा नहीं लगता.....

बिना बात के यूँ रूठ जाना अच्छा नहीं लगता,
हर बात पर यूँ चुप रहना अच्छा नहीं लगता,
तुमने जो उठाई है यह हिज्र की दीवार,
क्या इसका टूट जाना अच्छा नहीं लगता,
बात बात पे आंसू बहाने लगते हो,
क्या हमारा मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता...

यूँ तो मशरूफ रहते हो दिनभर दूनियादारी में,
क्या  दो पल हमसे गुफ्तगू करना अच्छा नहीं लगता,
रस्म ज़माने की सारी निभाई तुमने,
क्या हमसे वफ़ा की रस्म निभाना अच्छा नहीं लगता....

निगाह झुका लेते हो हमें सामने देखकर,
क्या हमसे नजरे मिलाना अच्छा नहीं लगता,
यादें  तुम्हारी  सोने नहीं देती है रात भर,
क्या हमारा तुम्हे अपने  सपनो में देखना भी अच्छा नहीं लगता...

हर बार लहर बनकर तेरी यादें मेरे साहिल से टकरा वापिस चली जाती है,
क्या मेरा तुझमे डूब जाना भी अच्छा नहीं लगता,
तुझसे हमारी मोह्हबत ने सिर्फ वफ़ा ही की है,
पर लगता है तुझे हमारी मोह्हबत का यह कारनामा भी अच्छा नहीं लगता....



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