Saturday, 20 August 2011

मोह्हबत बयां कर रहा हूँ मैं...

साफ़ लफ्जों में कह दिया उसने, की मुझे तुमसे मोह्हबत नहीं,
पर फिर भी उसके आने का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं,

जो वजह थी उसकी मुझसे मोह्हबत न करने की,
वो खामियां अब तक खुद में तलाश रहा हूँ मैं,

या रब अब तो मेरा सजदा कुबूल कर,
एक मुद्दत से तेरे आगे सर झुखा रहा हूँ मैं,

देखता हूँ हर रोज़ उसको एक नए शख्स के साथ,
पर फिर उसे नजर अंदाज़ करते जा रहा हूँ मैं,

उसके लहेजे में साफ़ नजर आती है बेवफाई,
पर फिर भी उससे वफ़ा की उम्मीद कर रहा हूँ मैं,

इससे बड़ी मोह्हबत की मिसाल और क्या होगी,
की वो है बेवफा, पर फिर भी उसे वफादार कहे जा रहा हूँ मैं,

उम्र गुजर गयी, पर सबक न सीखा,
मौत दरवाजे पर है, और आशिकी किये जा रहा हूँ मैं,

मेरे लफ्जों को सिर्फ मेरी ग़ज़ल न समझना,
किसी दीवाने "शायर" की  मोह्हबत बायाँ कर रहा हूँ में........

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