Thursday, 11 August 2011

एक गाँव की गुडिया थी...

आँखों में था गहरा काजल, माथे पर छोठी बिंदिया थी,
मैंने देखी थी एक लड़की जो गाँव की गुडिया थी..

सुबह उठे और मंदिर जाती, व्रत भी वो सब करती थी,
माँ बाप के आशीर्वाद  से दिन वो अपना शुरू करती थी,
सर पर थोडा पल्लू लेकर घर से निकलती थी,
न कुछ बोले न कुछ देखे, बस अपनी धुन में चलती थी,
मैंने देखि थी एक लड़की जो गाँव की गुडिया थी..

न लाली न किसी तरह का श्रृंगार वो करती थी,
थोड़ी सी वो सांवली थी पर बहुत निखरती थी,
सुन्दर तो वो बहुत थी लेकिन घमंड न करती थी,
मैंने देखी थी एक लड़की जो गाँव की गुडिया थी..

शरमाती थी घबराती थी, पर नहीं थी इतराती,
अपनी सुन्दर बातों से वो घर को स्वर्ग बनती थी,
न बोले वो ऊँची  बोली न अपनी बातों से वो दिल को धुखाती थी,
सहज अर्थ के शब्दों से वो बात करती थी,
मैंने देखी थी एक लड़की जो गाँव की गुडिया थी..

अब ढूंढता हूँ शेहर में उस की जैसी लड़की को,
पर थक हार के खाली हाथ ही आता हूँ घर में शाम को,
लगता है पूरी दुनिया में यो एक लोती थी,
मैंने देखी थी एक लड़की जो गाँव की गुडिया थी..

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