वक़्त वक़्त की बात हुआ करती है,
कभी महफ़िल तो कभी तन्हाई हुआ करती है,
है हर ख़ुशी उसके जाने के बाद भी हासिल ,
पर फिर भी न जाने क्यों उसकी कमी महसूस हुआ करती है....
मोह्हबत के परिंदों से न पूछ जात उनकी,
यह सरहदें भी इनकी गुलाम हुआ करती हैं,
है दुनिया में हर जगह अँधेरा छाया हुआ,
पर शम्मा सिर्फ परवाने के लिए जलती है...
बिखर जाता है हर शक्स मोह्हबत में टूट के,
पर आशिको की भीड़ कभी कम नहीं हुआ करती है,
मुखलूस है चाँद ही पन्ने मोह्हबत की किताब में आबादी के,
बाकि बर्बादी से तो पूरी किताब छपी होती है.....
Wah Mere LAL..... M Proud Of U.... :))
ReplyDeleteKeep Going...
Thanks bhaiyaa
ReplyDeletebohot mast
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