मैं जिससे हर वक़्त मिलना चाहता हूँ,
कभी कभी वो मेरे ख्वाबों में आ जाती है,
साँझ ढलती है, चाँद निकलता है, और धीमी बारिश शुरू हो जाती है,
मैं उसके आघोष में वो मेरे आघोष में,
और हमारी गुफ्तगू शुरू हो जाती है.....
चारो तरफ सन्नाटा हो जाता है ,
मेरे कानो को सिर्फ उसकी धड़कन सुनाई देती है,
थोडा सा शर्माती है, थोडा सा घबराती है,
फिर मेरे माथे पर एक प्यारा सा चुम्बन कर,
अपना डर दूर भगाती है....
समंदर की लहरें शांत रहती है,
दीप की रौशनी जगमगाती है,
मेरे हाथों में सिन्दूर देख, उसके चेहरे पर एक चमक आ जाती है,
फिर थोडा शर्माती है , सर पर घूँघट डालती है, और मुझे निहारती है,
फिर जैसे ही अपने हाथ उसकी मांग में सिन्दूर सजाने को बढ़ता हूँ,
कम्भखत ख्वाब टूट जाता है और नींद खुल जाती है....
जिंदगी एक बार फिर तनहा हो जाती है,
उसे अपने पास न पाकर मेरे चेहरे से रौनक लौट जाती है...
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