Tuesday, 12 April 2011

न जाने क्यों तेरे संग.......

न जाने क्यों तेरे संग वक्त गुजारना अच्हा लगता है.....
तेरी हर ख्वाहिश को पूरा करना अच्हा लगता  है...
दिल तो बहुत है इस दुनिया में...
पर न जाने क्यों तेरे दिल पर मर मिटना अच्हा लगता है.......

न जाने क्यों तुझे हसाना अच्हा लगता है.......
तेरी एक मुस्कुराहट के लिए आंसू बहाना अच्हा लगता है.....
चेहेरे तो बहुत है इस दुनिया मैं.....
पर न जाने क्यों तेरे ही चेहेरे पर मर मिटना अच्हा लगता है.......

न जाने क्यों तेरी आँखों में डूब जाना अच्हा लगता है...
तेरी आँखों में अपनी तस्वीर देखना अच्हा लगता है..
ख़ूबसूरती तो बहुत है इस दुनिया में....
पर न जाने क्यों तेरी सादगी पर मिटना अच्हा लगता है...

न जाने क्यों तेरे करीब रहना अच्हा लगता है...
तेरी हर एक बात को सुनना अच्हा लगता है....
आवाज़ तो बहुत है इस दुनिया मैं....
पर न जाने क्यों तेरी आवाज़ पर मर मिटना अच्हा लगता है.......

और
न जाने क्यों यह दिल तुझसे दूर रहना नहीं चाहता है.....
एक पल का इंतज़ार सहना नहीं चाहता है...
इसलिए तकलीफ देते है शायद तुझको....
जब हमारा कोई सवाल बार बार तेरे पास आता है.....

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